Aug 30, 2016

चैती की मौत से उपजे कई अनसुलझे सवाल

दीनबंधु वत्स

चैती का घर जहां उसने अपनी अंतिम सांस ली
चैती देवी की मौत ने हमारे सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था के समक्ष न सिर्फ़ कई सवाल खड़े किए हैं बल्कि सरकारी दावों की पोल भी खोल कर रख दी है। तीन बच्चों की माँ चैती देवी (35) की मौत संदीग्ध परिस्थितियों में बिहार के वैशली ज़िला के निकट पुरखोली पंचायत के समसपुरा गाँव में हो गई थी। यह ख़बर 21 जनवरी को स्थानीय मीडिया के माध्यम में सामने आई।

चैती समसपुरा में अपने मौसेरे भाई देवलाल माँझी के घर रहती थी। देवलाल और उसकी पत्नी रेखा माँझी तीन चार दिनों के लिए घर से बाहर गए हुए थे। घर में खाने पीने का कोई समान नहीं था। देवलाल का कहना है कि वह पड़ोस के शम्भू मांझी को चैती की देख भाल रखने के लिए कह कर गए थे। चैती पिछले कुछ दिनों से बीमार थी। गाँव वालों ने बताया कि उसे दमा की बीमारी थी। ठंड का मौसम भी था और इस दौरान घर में खाने पीने का कुछ सामान भी नहीं था। बीमारी की हालत में अकेले बिना भोजन के रहना शायद चैती के लिए मौत का सबब बन गया। लोगों से बातचीत के दौरान विरोधाभाषी तथ्य सामने आए। शम्भू मांझी ने बताया कि उसने चैती और उसके साथ रह रहे दोनों बच्चों को तीनों दिन खाना खिलाया जबकि चैती के सगे भाई बोधी मांझी ने बताया कि वह शम्भू को खाना बनाने के लिए आवश्यक सामान देकर गया था। वहीं गाँव के पत्थल मांझी ने बताया कि सोमवार रात जब वह चैती को देखने गया तो वह घर में बेहोष`

चैती के बीटा और बेटी अपनी मौसी रेखा देवी के sath 
पड़ी थी और उसके दोनों बच्चे रो रहे थे। इस ठंड के मौसम में उनके पास ओढ़ने के लिए कंबल तक नहीं था। वह घर के फटे पुराने कपड़े ओढ़ी हई  थी। पत्थल मांझी के अनुसार उसने दोनों बच्चों को खाने के लिए पानी में भीगा हुआ चूड़ा दिया। लेकिन चैती की हालत इस हद तक ख़राब थी कि वह आँख भी नहीं खोल पा रही थी। इस विरोधाभाष से यह प्रतीत होता है कि चैती को खाने के लिए ठीक से कुछ नहीं मिल सका। बीते तीन दिनों तक उसने क्या खाया यह भी स्पष्ट नहीं है। बीमारी और ठंड का प्रभाव भी खाली पेट ज़्यादा दिखता है। लिहाज़ा दयनीय हालात में रह रही अभावग्रहस्त चैती की मौत हो गई।

सामाजिक आर्थिक विषमता को झेल रही चैती के साथ भेदभाव मरने के बाद भी कम नहीं हुआ। चैती की मौत की ख़बर स्थानीय प्रखंड प्रमुख पार्वती देवी की मौत की वजह से दब गई। गाँव के लोग पार्वती देवी के अंतिम संस्कार में शामिल होने चले गए थे। चैती का शव घर में ही पड़ा रह गया। बाद में मामला प्रकाश में आया। चैती का मौसेरा भाई देव मांझी को गाँव आने में दो दिन लग गए।

चैती की कहानी इस टोले की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सामने लाती है। ग़रीबी लोगों को भपेट खाना तक नहीं देती तो स्वास्थ्य और बीमारियों पर ध्यान देना बहुत दूर की बात है। ज़्यादातर लोगों का कहना था कि सार्वजनिक जन वितरण प्रणाली में भारी गड़बड़ी है। लोगों को हर महीने राशन नहीं मिलता है। कुछ लोगों के पास तो इतना भी पैसा नहीं कि राशन की दुकान से चावल गेंहू ख़रीद सकें।

इस पूरे टोले में किसी के घर में शौचालय नहीं है। सार्वजनिक शौचालय बन गए हैं। लेकिन  शौचालय टूटे फूटे हैं जिसका कोई इस्तेमाल नहीं होता है। गाँव में स्वच्छ पेयजल के नाम पर एक हैंडपंप है, जिसका इस्तेमाल पूरा गाँव करता है। तमाम दावों और प्रयासों के बावजूद गाँव में षौचालय का अभाव स्वच्छ भारत मिषन की असफ़लता की कहानी बयां करती है।

कुल मिलाकर गाँव की ज़मीनी हालत और सरकारी समावेषी विकास के दावे एक दूसरे के बरअक्स नज़र आते हैं। इससे यह भी परिलक्षित हो रहा है कि आज भी अंतिम पायदान तक आते-आते विकास की गति शिथिल पड़ रही है।

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